उपराष्ट्रपति
अनुच्छेद 63 भारतीय संविधान में एक संक्षिप्त लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है। यह अनुच्छेद भारत में उपराष्ट्रपति के संवैधानिक अस्तित्व की पुष्टि करता है, भले ही इसमें कार्य, अधिकार, निर्वाचन प्रक्रिया या योग्यता का विस्तार से वर्णन नहीं किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह केवल उपराष्ट्रपति के पद की स्थापना करता है।
- इसके कार्य, चयन की प्रक्रिया, योग्यता, कार्यकाल, पदत्याग आदि का विवरण अन्य अनुच्छेदों में किया गया है:
- अनुच्छेद 64 – उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति होंगे।
- अनुच्छेद 66 – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन।
- अनुच्छेद 67 – पदच्युति और त्यागपत्र।
- अनुच्छेद 68 – रिक्ति की स्थिति और उपचुनाव।
महत्व:
उपराष्ट्रपति का पद भारतीय गणराज्य की संवैधानिक संरचना का एक अभिन्न हिस्सा है। राष्ट्रपति के अनुपस्थित रहने या पद रिक्त होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं, जिससे शासन में निरंतरता और स्थायित्व सुनिश्चित होता है।

अनुच्छेद 63 से 68 — भारत का उपराष्ट्रपति
1. अनुच्छेद 63 – भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा
मूल प्रावधान:
“भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।”
(Indian Constitution Article 63: There shall be a Vice-President of India.)
अनुच्छेद 63 भारतीय संविधान का एक संक्षिप्त लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो भारत में उपराष्ट्रपति पद की स्थापना करता है। यह बताता है कि भारत में एक उपराष्ट्रपति का संवैधानिक पद होगा, लेकिन इसके अधिकार, कार्य, योग्यता और चुनाव प्रक्रिया का विवरण अन्य अनुच्छेदों में किया गया है।
- अनुच्छेद 63 केवल उपराष्ट्रपति के पद की घोषणा करता है।
- यह उपराष्ट्रपति के कार्यों, चुनाव, योग्यता या कार्यकाल की जानकारी नहीं देता।
- यह अनुच्छेद भारतीय गणराज्य में उच्च संवैधानिक पदों की संरचना का एक आधारभूत अंग है।
2. अनुच्छेद 64 – उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होंगे
मूल प्रावधान:
“उपराष्ट्रपति, पद धारण करते समय, राज्यसभा के पदेन सभापति होंगे।”
(Article 64: The Vice-President shall be ex-officio Chairman of the Council of States.)
अनुच्छेद 64 के अनुसार, भारत का उपराष्ट्रपति पदेन (ex-officio) रूप से राज्यसभा का सभापति होता है। इसका अर्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होता है, तो वह स्वतः ही राज्यसभा का अध्यक्ष बन जाता है।
यह प्रावधान भारत की संघीय एवं संसदीय प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु महत्वपूर्ण है।
- पदेन सभापति का अर्थ: कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति बनते ही स्वतः राज्यसभा का सभापति बन जाता है।
- जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के कार्यभार का निर्वहन कर रहे होते हैं (अनुच्छेद 65 के अंतर्गत), तब वह राज्यसभा के सभापति नहीं रहते।
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते हैं, जैसे लोकसभा में अध्यक्ष करता है।
- वे सामान्य स्थिति में मतदान नहीं करते, लेकिन यदि सदन में मत बराबर हो जाए, तो निर्णायक वोट देते हैं (casting vote)।
3. अनुच्छेद 65 – राष्ट्रपति के पद की रिक्ति में कार्यभार
मूल प्रावधान:
“जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो या वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन करेंगे।”
(Article 65: The Vice-President shall act as President or discharge his functions during casual vacancies or absence.)
अनुच्छेद 65 यह प्रावधान करता है कि जब राष्ट्रपति का पद किसी कारणवश रिक्त हो जाए (जैसे मृत्यु, इस्तीफा, महाभियोग या अयोग्यता), या वह कार्य करने में असमर्थ हों (जैसे बीमारी या विदेश यात्रा), तब उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति (Acting President) के रूप में सभी कार्यभार संभालते हैं।
रिक्ति की स्थिति में:
- उपराष्ट्रपति तब तक राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं, जब तक कि नया राष्ट्रपति चुनकर पद ग्रहण न कर ले (अधिकतम 6 महीने तक)।
अनुपस्थिति की स्थिति में:
- जब राष्ट्रपति अस्थायी रूप से अनुपस्थित हों (जैसे विदेश दौरा), तब उपराष्ट्रपति कार्यभार संभालते हैं।
कार्यवाहक राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के सभी अधिकार, कर्तव्य और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जब तक वे कार्य कर रहे हों।
इस अनुच्छेद के तहत कार्य करते समय, उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति नहीं रहते — उनके स्थान पर राज्यसभा का उपसभापति कार्यभार संभालता है (अनुच्छेद 89)।
6. अनुच्छेद 66 – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन
मूल प्रावधान
“उपराष्ट्रपति का निर्वाचन, एक निर्वाचक मंडल द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति से किया जाएगा, जिसमें केवल संसद के दोनों सदनों के सदस्य सम्मिलित होंगे।”
अनुच्छेद 66 उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया, निर्वाचक मंडल और मतदान की प्रणाली का स्पष्ट विवरण प्रस्तुत करता है। यह राष्ट्रपति के चुनाव से अलग है, क्योंकि इसमें केवल संसद के सदस्य शामिल होते हैं, न कि राज्य विधानसभाएं।
(i). निर्वाचक मंडल:
- संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सभी सदस्य उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
- इसमें नामित सदस्य भी भाग लेते हैं।
- राज्य विधानसभाओं के सदस्य इसमें भाग नहीं लेते।
(ii). मतदान की प्रक्रिया:
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation)।
- एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System)।
- मतदान गुप्त रूप से (Secret Ballot) होता है।
(iii). निर्वाचन की समय-सीमा:
- वर्तमान उपराष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने से पहले नया उपराष्ट्रपति चुन लिया जाना चाहिए।
(iv). चुनाव विवाद:
- उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों का निपटारा भारत का सर्वोच्च न्यायालय करता है।
उपराष्ट्रपति बनने की योग्यता (Qualifications):
योग्यता | विवरण |
---|---|
नागरिकता | भारत का नागरिक हो |
न्यूनतम आयु | 35 वर्ष या उससे अधिक |
अन्य | राज्यसभा का सदस्य बनने के योग्य हो |
निषेध | कोई लाभ का पद न धारण करता हो (सरकारी वेतनभोगी पद, कुछ अपवादों को छोड़कर) |
अनुच्छेद 66: संसद के दोनों सदनों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से उपराष्ट्रपति का चुनाव होता है।
7. अनुच्छेद 67 – उपराष्ट्रपति का पदत्याग और पदच्युति (Removal)
मूल प्रावधान:
अनुच्छेद 67 के अंतर्गत उपराष्ट्रपति अपने पद से:
- पदत्याग (Resignation) कर सकते हैं,
- या विशेष प्रक्रिया द्वारा पद से हटाए (Removed) जा सकते हैं।
- साथ ही, उनका कार्यकाल अधिकतम पाँच वर्ष तक होता है।
(i). कार्यकाल:
- उपराष्ट्रपति 5 वर्षों तक अपने पद पर बने रहते हैं, लेकिन यह कार्यकाल:
- समय से पहले त्यागपत्र देने,
- या पद से हटाए जाने की स्थिति में समाप्त हो सकता है।
- कार्यकाल पूरा होने के बाद, नए उपराष्ट्रपति के पदभार ग्रहण करने तक, वे पद पर बने रह सकते हैं।
(ii). पदत्याग:
- उपराष्ट्रपति अपने पद से त्यागपत्र राष्ट्रपति को लिखित रूप में देकर इस्तीफा दे सकते हैं।
- त्यागपत्र की स्वीकृति अनिवार्य नहीं होती — बस पत्र सौंपना पर्याप्त है।
(iii). पदच्युति:
उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया विशेष और संविधान में निर्धारित है:
प्रक्रिया | विवरण |
---|---|
प्रस्ताव (Resolution) | राज्यसभा में लाया जाता है |
पूर्व सूचना | कम से कम 14 दिन पहले लिखित सूचना आवश्यक |
बहुमत | प्रस्ताव को राज्यसभा के संपूर्ण सदस्य संख्या के बहुमत से पारित होना चाहिए |
अनुमोदन | इसके बाद, लोकसभा द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदन आवश्यक |
आधार | संविधान में कोई विशेष “आरोप” नहीं तय — यह राजनीतिक या नैतिक कारण हो सकते हैं |
नोट:-
- राष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग (Impeachment) होता है (अनुच्छेद 61),
- लेकिन उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग नहीं कहलाती।
“अनुच्छेद 67: उपराष्ट्रपति 5 वर्षों तक पद पर रहते हैं; राष्ट्रपति को इस्तीफा दे सकते हैं और संसद द्वारा हटाए जा सकते हैं।”
8. अनुच्छेद 68 – रिक्ति की स्थिति और उपचुनाव
मूल प्रावधान:
यदि उपराष्ट्रपति का पद किसी कारणवश रिक्त हो जाता है (जैसे मृत्यु, त्यागपत्र, पदच्युति आदि), तो 6 माह के भीतर चुनाव कराया जाना आवश्यक है, और चुना गया व्यक्ति शेष कार्यकाल पूरा करेगा।
अनुच्छेद 68, भारतीय संविधान में इस बात की व्यवस्था करता है कि उपराष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर नया चुनाव कब और कैसे कराया जाए। यह भारत के उच्च संवैधानिक पदों की निरंतरता और स्थायित्व सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक प्रावधान है।
(i). कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव:
- यदि वर्तमान उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूर्ण होने वाला है, तो निर्वाचन समय से पहले कराया जाना चाहिए।
- ताकि नए उपराष्ट्रपति का चुनाव समय पर हो जाए और पद रिक्त न रहे।
(ii). आकस्मिक रिक्ति:
- यदि उपराष्ट्रपति का पद अचानक रिक्त हो जाता है —
🔹 मृत्यु,
🔹 त्यागपत्र,
🔹 पदच्युति,
🔹 अन्य किसी कारणवश अयोग्यता के कारण —
तब संविधान कहता है कि:
🔸 छह महीने (6 months) के भीतर उस रिक्ति को भरना आवश्यक है।
(iii). कार्यकाल:
- इस तरह से चुना गया व्यक्ति केवल पूर्ववर्ती उपराष्ट्रपति के शेष कार्यकाल तक ही पद पर रहेगा, न कि नया पूर्ण पाँच वर्षीय कार्यकाल पाएगा।
“अनुच्छेद 68: उपराष्ट्रपति की रिक्ति होने पर 6 माह के भीतर उपचुनाव होना चाहिए; चुना गया व्यक्ति शेष कार्यकाल पूरा करता है।”
अनुच्छेद 63 से 68 – उपराष्ट्रपति से संबंधित अनुच्छेदों का सारांश
अनुच्छेद | विषय | मुख्य बिंदु |
---|---|---|
63 | उपराष्ट्रपति का पद | भारत में एक उपराष्ट्रपति होगा — यह केवल पद की स्थापना करता है। |
64 | राज्यसभा के सभापति | उपराष्ट्रपति पदेन (ex-officio) रूप से राज्यसभा के सभापति होते हैं। कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने पर यह कार्यभार नहीं निभाते। |
65 | कार्यवाहक राष्ट्रपति | राष्ट्रपति के पद रिक्त या अनुपस्थित होने पर उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं। |
66 | निर्वाचन | उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों द्वारा होता है, एकल संक्रमणीय मत पद्धति और गुप्त मतदान से। |
67 | पदत्याग और पदच्युति | उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर पद छोड़ सकते हैं; राज्यसभा द्वारा प्रस्ताव और लोकसभा की साधारण बहुमत से हटाए जा सकते हैं। |
68 | उपचुनाव | यदि उपराष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाए, तो 6 माह के भीतर चुनाव कराना आवश्यक है। नव-निर्वाचित व्यक्ति केवल शेष कार्यकाल के लिए कार्य करता है। |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 से 68 तक उपराष्ट्रपति के पद से संबंधित विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। ये अनुच्छेद न केवल उपराष्ट्रपति के संवैधानिक अस्तित्व को स्थापित करते हैं, बल्कि उनके निर्वाचन, कार्य, कार्यकाल, त्यागपत्र, पदच्युति और रिक्ति की स्थिति में व्यवस्था को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।
उपराष्ट्रपति न केवल राज्यसभा के सभापति होते हैं, बल्कि आवश्यक परिस्थितियों में कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य करते हैं, जिससे संवैधानिक व्यवस्था की निरंतरता और स्थायित्व सुनिश्चित होता है।
इन अनुच्छेदों के माध्यम से भारत में एक सशक्त और स्थिर संवैधानिक शासन प्रणाली की नींव रखी गई है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा का संरक्षण करती है।
संक्षिप्त स्मरण सूत्र
- 🔹 63 – केवल उपराष्ट्रपति का संवैधानिक अस्तित्व
- 🔹 64 – राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में भूमिका
- 🔹 65 – राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार
- 🔹 66 – चुनाव प्रक्रिया (केवल संसद के सदस्य)
- 🔹 67 – इस्तीफा या संसद द्वारा हटाने की प्रक्रिया
- 🔹 68 – उपचुनाव की समय सीमा (6 माह)
उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान की प्रक्रिया
(i). निर्वाचक मंडल (Electoral College) कौन होता है?
- केवल संसद के दोनों सदनों (लोकसभा + राज्यसभा) के सभी निर्वाचित और मनोनीत सदस्य मतदान करते हैं।
- यानी कि:
- लोकसभा के निर्वाचित सदस्य
- राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य
- राज्यसभा के नामांकित सदस्य
- लोकसभा के नामांकित सदस्य (यदि हों)
नोट:- राज्य विधानसभाओं के सदस्य इस चुनाव में भाग नहीं लेते।
(ii). चुनाव की प्रणाली (Voting System) कौन-सी होती है?
उपराष्ट्रपति चुनाव में प्रत्यक्ष मतदान नहीं होता, बल्कि होता है:
“गोपनीय मतदान द्वारा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System – STV) के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation)”
इसका अर्थ:
- हर सांसद को एक मतपत्र (ballot paper) मिलता है।
- उस पर वे उम्मीदवारों को प्राथमिकता क्रम (1, 2, 3…) में चिह्नित करते हैं।
- वोटों की गिनती प्राथमिकताओं के आधार पर होती है।
- यदि कोई उम्मीदवार पहली प्राथमिकता के वोटों में ही कोटा पार कर लेता है, तो वह विजयी घोषित हो जाता है।
- यदि नहीं, तो सबसे कम वोट पाने वाले को हटा दिया जाता है और उसके मतों को दूसरी प्राथमिकता के अनुसार अन्य उम्मीदवारों को ट्रांसफर किया जाता है — यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कोई एक उम्मीदवार कोटा पार न कर ले।
(iii). मतदान की गोपनीयता:
- चुनाव गुप्त मतदान द्वारा होता है।
- प्रत्येक सदस्य को विशेष गोपनीय बूथ में जाकर वोट देना होता है।
- वोटिंग में व्हिप लागू नहीं होती — अर्थात् सांसद अपनी पार्टी लाइन से हटकर भी वोट कर सकते हैं।
(iv). कब और कैसे होता है चुनाव?
- यदि कार्यकाल पूरा होने वाला है, तो चुनाव समाप्ति से पहले 60 दिन के भीतर कराया जाता है।
- भारत का चुनाव आयोग (Election Commission of India) इसकी प्रक्रिया आयोजित करता है।
भारत में उपराष्ट्रपति चुनाव: वोटों की गिनती कैसे होती है?
भारत में उपराष्ट्रपति का चुनाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 66 के अंतर्गत होता है। यह चुनाव राष्ट्रपति चुनाव से कुछ मामलों में अलग होता है, विशेष रूप से मतदान और गिनती के तरीके में।
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती:
उपराष्ट्रपति का चुनाव Single Transferable Vote System (STV) के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation) के तहत होता है। इसमें हर मतदाता केवल एक वोट डालता है, लेकिन उस वोट के अंदर प्राथमिकता क्रम (1, 2, 3…) में कई उम्मीदवारों को रैंक कर सकता है।
गिनती की प्रक्रिया:
- गुप्त मतपत्र (Secret Ballot) का उपयोग किया जाता है।
मतदाता (सांसद) अपने मतपत्र पर प्रत्याशियों को प्राथमिकता अनुसार क्रम में चिह्नित करता है। - प्रत्येक मतदाता को एक ही वोट मिलता है, लेकिन वह अपनी वरीयता (Preference) क्रम में कई नाम दे सकता है – जैसे 1, 2, 3…
- पहले केवल पहली वरीयता (First Preference) वाले वोट गिने जाते हैं।
- यदि कोई उम्मीदवार पहली वरीयता के कुल वैध मतों का 50% से अधिक प्राप्त कर लेता है, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
- यदि कोई उम्मीदवार बहुमत प्राप्त नहीं करता, तो जिसे सबसे कम पहली वरीयता वोट मिले हैं, उसे बाहर कर दिया जाता है, और उसके वोटों की अगली वरीयता (Second Preference) को गिना जाता है।
- यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक कोई एक उम्मीदवार बहुमत नहीं प्राप्त कर लेता।
नोट:-
- केवल संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – के सभी निर्वाचित और नामांकित सदस्य इस चुनाव में मतदान करते हैं।
- राज्य विधानसभाओं के सदस्य (MLAs) उपराष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते।
उदाहरण:
मान लीजिए उस वर्ष कुल 780 सांसद हैं (543 लोकसभा + 245 राज्यसभा + 2 नामांकित लोकसभा सदस्य + 12 नामांकित राज्यसभा सदस्य)।
अगर 760 सांसदों ने मतदान किया, तो बहुमत के लिए आवश्यक वोट होंगे:
- कुल वैध वोट: 760
- बहुमत = 760 ÷ 2 = 380
- निर्वाचित होने के लिए जरूरी वोट = 380 + 1 = 381
नोट:- यानी कोई भी उम्मीदवार 381 या उससे अधिक प्रथम वरीयता वोट प्राप्त करता है, तो वह उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाएगा।
उपराष्ट्रपति चुनाव बनाम राष्ट्रपति चुनाव: तुलना तालिका
विषय | राष्ट्रपति चुनाव | उपराष्ट्रपति चुनाव |
---|---|---|
मतदाता | सांसद + राज्य विधायक | केवल सांसद (लोकसभा + राज्यसभा) |
गिनती प्रणाली | आनुपातिक प्रतिनिधित्व (STV + वेटेज वोट) | STV लेकिन सभी मतों का समान मूल्य |
वोट का मूल्य | अलग-अलग (राज्य के अनुसार) | सभी मतों का समान मूल्य |
कौन निर्वाचित होता है | अधिकतम वैध वोट पाने वाला | बहुमत (50%+1) पाने वाला, प्राथमिकता अनुसार |
उपराष्ट्रपति का चुनाव भारत में एक प्रगतिशील लोकतांत्रिक प्रणाली को दर्शाता है, जहाँ सांसदों द्वारा दिए गए वरीयता क्रम वाले मतों के आधार पर सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुना जाता है। इसकी प्रक्रिया जटिल लग सकती है, लेकिन यह पारदर्शी और न्यायसंगत है।
2022 भारत उपराष्ट्रपति चुनाव
चुनाव तिथि:
- 6 अगस्त 2022
मतदाता विवरण:
- कुल सांसदों (Electoral College): 780 (543 निर्वाचित लोकसभा, 233 निर्वाचित राज्यसभा, 12 नामांकित राज्यसभा)
मतदान और उपस्थिति:
- मतदान करने वाले सांसदों की संख्या: 725
- मतदान प्रतिशत: 92.94 %
अवैध / रद्द मत:
- कुल अवैध/रद्द मत: 15
- वैध वोट = 725 – 15 = 710
उम्मीदवारों को प्राप्त वोट:
- जगदीप धनखड़ (NDA): 528 वोट (~74.37 %)
- मार्गरेट अल्वा (Opposition): 182 वोट (~25.63 %)
बहुमत कोटा (Quota in STV):
- सूत्र: [ (वैध वोट / 2) ] + 1
- = [ (710 / 2) ] + 1 = 355 + 1 = 356 वोट
किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 356 प्रथम वरीयता वोट जरूरी थे।
विजेता:
- जगदीप धनखड़ पूरे 528 प्रथम वरीयता वोट प्राप्त करके निर्वाचित हुए।
- यह लगभग 172 वोट (528 – 356) की वृद्धि कोटा से ऊपर है — यानी स्पष्ट बहुमत।
- विजयी अंतर: 528 – 182 = 346 वोट
- यह पिछले लगभग छह उपराष्ट्रपति चुनावों में सबसे बड़ा जीत अंतर माना गया है (1997 के बाद से सबसे अधिक)।
मानदंड | तथ्य |
---|---|
कुल सांसदों की संख्या | 780 |
मतदान दर्ज किए गए | 725 (92.94 %) |
वैध वोट | 710 |
बहुमत कोटा | 356 वोट |
जगदीप धनखड़ के वोट | 528 (≈ 74.37 %) |
मार्गरेट अल्वा के वोट | 182 (≈ 25.63 %) |
जीत का वोट अंतर | 346 वोट |
उपलब्ध रिकॉर्ड | पिछले छह चुनावों में सबसे बड़ा अंतर |
उपराष्ट्रपति चुनाव में सिंगल ट्रांसफरबल वोट STV व्यवस्था के अंतर्गत विजेता बने थे। जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया और विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा से भारी अंतर से जीत हासिल की। मतदान की उच्च उपस्थिति और नागरिकता प्रक्रिया इस चुनाव को लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली बनाती है।
मौलिक अधिकारों पर लिंक:[भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों को समझें]
भारतीय संविधान की 5 रिट्स (Writs):
[अर्थ, उद्देश्य, विशेषताएँ]
भारत के उपराष्ट्रपति का आधिकारिक वेबसाइट
लिंक: https://vicepresidentofindia.nic.in/