2024 में भारत में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व: चुनौतियाँ, संगठन और समाधान

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ महिलाओं की आबादी लगभग 49% है। इसके बावजूद, राजनीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बेहद सीमित है। 2024 के आम चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों के आँकड़े बताते हैं कि राजनीतिक निर्णयों में महिलाओं की भूमिका अब भी नगण्य है।

राजनीतिक भागीदारी की वर्तमान स्थिति

  • लोकसभा 2024 में कुल महिला सांसदों का प्रतिशत लगभग 15% है।
  • कई राज्य विधानसभाओं में यह आंकड़ा 10% से भी कम है।
  • महिलाओं की भागीदारी मतदाता के रूप में तो बढ़ी है, लेकिन उम्मीदवार और निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में नहीं।

मुख्य चुनौतियाँ

  • राजनीतिक दलों द्वारा टिकट न देना महिलाएँ अक्सर टिकट वितरण में उपेक्षित रहती हैं।
  • सामाजिक-पारिवारिक बाधाएँ पारंपरिक सोच के चलते महिलाएँ राजनीति में आगे नहीं बढ़ पातीं।
  • वित्तीय एवं संसाधनगत सीमाएँ चुनाव प्रचार के लिए जरूरी संसाधनों की कमी।
  • सार्वजनिक जीवन में असुरक्षा राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा भी चिंता का विषय है।

महिला आरक्षण विधेयक – एक उम्मीद

  • 2023 में 128वाँ संविधान संशोधन पारित हुआ, जिसमें 33% आरक्षण का प्रावधान है।
  • लेकिन इसका लागू होना 2029 के बाद ही संभव है, जो इस सुधार की गति पर प्रश्न खड़े करता है।

समाधान और आगे की राह

  • राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे स्वेच्छा से महिलाओं को अधिक टिकट दें।
  • प्रशिक्षण और नेतृत्व विकास कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है।
  • स्थानीय निकायों में 33% आरक्षण का अच्छा प्रभाव देखा गया है, इसे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाना चाहिए।


1. 2024 में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व

लोकसभा में महिलाओं की स्थिति:

  • 2024 की 18वीं लोकसभा में 74 महिला सांसद चुनी गईं (कुल 543 में से), जो कि केवल 13.6% है।
  • यह आंकड़ा 2019 के 78 (14.4%) महिला सांसदों से भी कम है, जो चिंता का विषय है।
  • सबसे ज़्यादा महिला सांसद भाजपा (31), कांग्रेस (13), और तृणमूल कांग्रेस (11) से चुनी गईं।

महिला प्रतिनिधित्व केवल 13.6% — Women’s Reservation Bill के 33% लक्ष्य से दूर।
महिलाओं का सफलता प्रतिशत पुरुषों से बेहतर, किन्तु प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित।
~58% महिला सांसद नए चेहरे, जिनमें कई युवा (25–30 वर्ष) शामिल हैं। 

राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का स्थान:

  • राज्यों में औसतन केवल 9% सीटें महिलाओं के पास हैं।
  • किसी भी राज्य में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20% से ऊपर नहीं है।

महिलाओं को टिकट देने का रुझान:

  • 2024 के चुनाव में कुल उम्मीदवारों में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र ~9.5% रही।
  • अधिकांश राजनीतिक दल महिलाओं को सीमित और कमजोर सीटों पर ही टिकट देते हैं।

2. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बाधाएँ

(a) सामाजिक बाधाएँ:

  • पितृसत्तात्मक सोच और रूढ़िवादी मानसिकता।
  • घरेलू ज़िम्मेदारियों और सुरक्षा चिंताओं के चलते महिलाएं राजनीति से दूर रहती हैं।

(b) आर्थिक बाधाएँ:

  • चुनाव लड़ना महँगा है – महिला उम्मीदवारों के पास संसाधन और नेटवर्क की कमी होती है।

(c) राजनीतिक बाधाएँ:

  • राजनीतिक दल महिलाओं को केवल “महिला विंग” तक सीमित रखते हैं।
  • महिला आरक्षण विधेयक (2023) पारित तो हुआ, लेकिन इसे 2029 के बाद लागू किया जाएगा।

3. महिलाओं के लिए काम कर रहे संगठन

  • महिला मोर्चा, महिला SHGs, और स्वयंसेवी संस्थाएं महिलाओं को नेतृत्व प्रशिक्षण, जागरूकता और समर्थन प्रदान कर रही हैं।
  • पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी ~44% है, जो इस बात का प्रमाण है कि अवसर मिलने पर महिलाएं अच्छा नेतृत्व कर सकती हैं।

4. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के उपाय

(a) कानूनी सुधार:

  • महिला आरक्षण विधेयक को शीघ्र लागू किया जाए।
  • चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को महिलाओं को टिकट देने के लिए बाध्य करे।

(b) राजनीतिक सुधार:

  • राजनीतिक दलों को टिकटों में कम से कम 33% हिस्सेदारी देनी चाहिए।
  • महिला नेतृत्व को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं।

(c) सामाजिक सुधार:

  • समाज में लैंगिक समानता की शिक्षा, मीडिया में महिलाओं की सकारात्मक छवि और राजनीतिक जागरूकता फैलाना ज़रूरी है।

(d) आर्थिक सहयोग:

  • महिला उम्मीदवारों के लिए राज्य द्वारा फंडिंग, चुनावी सब्सिडी और टैक्स छूट जैसे उपाय किए जाएं।

भारत में महिलाएं केवल वोटर नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की वाहक भी हैं। राजनीति में उनकी भागीदारी केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है। यदि हम चाहते हैं कि भारत एक समावेशी, प्रगतिशील और न्यायपूर्ण लोकतंत्र बने, तो महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को मजबूती से बढ़ावा देना आवश्यक है।


2024 में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लोकतांत्रिक समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, किंतु यह अभी भी अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँचा है। यद्यपि पंचायतों और नगरीय निकायों में 33% आरक्षण के कारण महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी है, परंतु संसद और विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व सीमित है। सामाजिक-पारिवारिक बाधाएँ, राजनीतिक दलों की उदासीनता, संसाधनों की कमी, और लैंगिक पूर्वग्रह उनकी राजनीतिक भागीदारी को सीमित करते हैं।

कुछ संगठन जैसे सेवा (SEWA), महिला शक्ति संगठन, और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), महिला सशक्तिकरण के लिए प्रशिक्षण, जागरूकता और सहायता प्रदान कर रहे हैं।

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने हेतु आवश्यक है कि महिला आरक्षण विधेयक को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, नेतृत्व विकास हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं, वित्तीय और तकनीकी सहयोग सुनिश्चित किया जाए, तथा राजनीतिक दलों को महिला उम्मीदवारों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए बाध्य किया जाए।

अंततः, एक समावेशी और उत्तरदायी लोकतंत्र के निर्माण हेतु महिलाओं की सक्रिय एवं समान राजनीतिक भागीदारी अनिवार्य है, जो भारत के संवैधानिक मूल्यों और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप है।

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